इस बार फिर मेरे हमसफर रतन लाल सूर्खियों में हैं. इस बार उनका सुर्खियों में होना पिछले अनेक बार की तुलना में अलग है. पहले वे अपने जुझारूपन, न्याय के लिए अपने संघर्ष, अपने संस्थान में दलित -बहुजन हितों के लिए अपने संघर्ष और अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक सक्रियता के लिए सुर्खियों में रहते रहे हैं. लेकिन इस बार मामला थोड़ा भिन्न है. इस बार उनके कॉलेज के प्रशासन में शामिल एक महिला ने अपने उत्पीडन और अपमान का आरोप लगाया है. महिला का कहना है कि जब वे मेरे यहाँ आईं तो रतन ने उन्हें अपशब्द कहे. हमेशा की तरह यह लड़ाई वे खुद भी लड़ सकते थे, बल्कि लड़ भी रहे हैं. लेकिन इस बार थोड़ी बात मुझे भी कहने की इच्छा हो रही है. क्योंकि दो अस्मिताओं को आपस में टकराने के माहौल बनाने का ब्राह्मणवादी इलीट षड़यंत्र दूसरी बार देख रही हूँ रतन के मामले में. रतन चूकी दलित प्रोफ़ेसर हैं, विद्यार्थियों में लोकप्रिय हैं, दलित -बहुजन हितों के लिए लड़ते है, कॉलेज और विश्वविद्यालय में आरक्षण की लड़ाई भी लड़ते रहे हैं इसलिए ब्राह्मणवादी भ्रष्ट तंत्र ने उनके खिलाफ महिला अस्मिता को खडा करने की कोशिश की. इसके पहले एक बार एक काल्पनिक नाम से ऐसा करने की कोशिश हुई थी और अब एक उपस्थित महिला से ऐसा करवाया गया है.
वे अपने शोध के लिए 2010 से 2013 तक अकादमिक छुट्टी पर थे. कॉलेज में लौटने से पहले से ही हिन्दू कॉलेज प्रशासन द्वारा इनके खिलाफ साजिश होते मैंने देखा. 3 नवम्बर 2014 को डॉ. प्रदुम्न कुमार, Officiating Principal, ने इन्हें एक पत्र लिखा (पत्र संख्या HC -2/2260). इस पत्र के साथ AR (Colleges) जिसके साथ किसी मोनिका राय का पत्र संलग्न था. मोनिका राय ने दिल्ली विश्वविद्यालय के वाईस चांसलर महोदय को एक पत्र लिखा था, जिसकी प्रतियाँ, चांसलर महोदय, हिन्दू कॉलेज गवर्निंग बॉडी के चेयरमैन, प्रिंसिपल, स्टाफ एसोसिएशन के अध्यक्ष तथा दिल्ली के जॉइंट लेबर कमिश्नर को भी भेजी गई थी. मोनिका जी ने इस पत्र में रतन के ऊपर कई गंभीर आरोप लगाए थे. रतन ने इस पत्र के साथ कई शंकाएं जाहिर की. मसलन:
(१) चूँकि यह पत्र वाईस चांसलर के ऑफिस से आया है, कही वे मुझे फंसाने की साजिश तो नहीं कर रहे हैं? फिर उन्होंने खुद ही कहा कि ‘VC साहब बहुत बड़े आदमी हैं, मेरे जैसे छोटे-मोटे शिक्षक से उन्हें क्या लेना देना!’
(२) सवाल यह भी था कि वाईस चांसलर साहब के ऑफिस में से तो कोई षड्यंत्र नहीं रच रहा?
(३) क्या Assistant Registrar वगैर किसी के निर्देश के या वगैर किसी वेरिफिकेशन के इस तरह लेटर फॉरवर्ड कर सकती हैं?
(४) क्या यह कॉलेज प्रशासन की साजिश हैं? उन्होंने उन्हीं दिनों कॉलेज में नियुक्तियों में धांधली और आरक्षण की अवहेलना को लेकर मैंने कॉलेज प्रशासन के खिलाफ़ VC महोदय, UGC, MHRD हर जगह ज्ञापन दिया था.
(5) फिर लगा कहीं यह सामूहिक साजिश तो नहीं?
मोनिका राय का ज्ञापन 23.9.14 को VC ऑफिस में जमा हुआ था और तक़रीबन चालीस दिन के अन्दर ही कई ऑफिस से गुजरता हुआ रतन के पास पहुंचा था. रतन आश्चर्यचकित थे कि आम तौर पर कोई अपने प्रिंसिपल या वाईस चांसलर महोदय को कोई पत्र लिखे, तो एक तो कोई जबाव आता ही नहीं, यदि आंशिक जबाव आया तो उसका कोई मतलब नहीं. लेकिन मोनिका रॉय के मामले में VC ऑफिस से लेकर प्रिंसिपल ऑफिस की तत्परता उनके लिए चौंकाने वाला, हतप्रभ करने वाला था. खैर, रतन ने उस पत्र का जवाब दिया उस पत्र में जो पता आदि था उसकी जानकारी के लिए उन्होंने चुनाव आयोग के वेबसाइट पर जाकर कथित शिकायतकर्ता का नाम और पता जानने की कोशिश की. साथ ही इन्द्रपुरी में रहने वाले कुछ साथियों से इन्द्रपुरी के इस पते पर जाकर पता करने का आग्रह किया कि जरा इस व्यक्ति और इनके पते की जानकारी दें. सामने जो तथ्य आए वो चौंकाने वाले थे; नाम, संगठन और पता सब फर्जी थे, दिल्ली के नक़्शे पर वे मौजूद ही नहीं थे. शिकायतकर्ता के विश्वसनीयता की जांच के बिना रतन लाल से सवाल पूछ लिया गया था, पत्र में कोई कांटेक्ट नंबर भी नहीं था. वह यह साजिश नहीं तो और क्या थी?
यह साजिश एक स्त्री ( काल्पनिक) को एक दलित प्राध्यापक के खिलाफ इस्तेमाल की थी. रतन ने व्यंग्य किया कि ‘अब सीधे इन्द्रलोक (इन्द्रपुरी नहीं) से ‘देवी’ को, मोनिका के अवतार में ले आये हैं वे. इसे कहते हैं ‘छल-लीला’. रतन के अनुसार काल्पनिक ‘मोनिका राय’ के ज्ञापन और उनके स्टाफ रूम के उनके कुछ विरोधियों की चर्चा में अभूतपूर्व समानता थी. स्टाफरूम की पूरी चर्चा मेरे घर के कैंपस और डा. आंबेडकर की प्रतिमा पर केन्द्रित होती थी. ऐसा लगता है कि जब काल्पनिक महिला से, व्यवस्था के दमन और आतंक से रतन पीछे नहीं हटे तो अब एक वास्तविक महिला को उनके खिलाफ उतरा गया है – फर्जी आरोपों के साथ. मैं सोचती हूँ कि क्या महिलायें कभी यह समझ पाएंगी कि ऐसे तंत्र में उनका सिर्फ इस्तेमाल होता है. सच है कि महिलाओं की कोई जाति नहीं होती, लेकिन महिलायें जाति से मुक्त भी नहीं हो पातीं. जिन्हें साझा लड़ाइयां लडनी चाहिए थी, वे एक दूसरे के खिलाफ लड़ाये जा रहे हैं. यह सब अंततः ब्राह्मणवादी व्यवस्था के हित में ही जाता है और हाशिये पर छूट जाते हैं दलित -बहुजन और स्त्रियाँ !
पुनश्च : एक पत्नी होने के नाते रतन के संघर्ष, मानसिक दशा को कौन बेहतर समझ सकता है। संकट और अभाव में रहकर भी कभी हार नहीं मानते। मुझे अमिट विश्वास है रतन इस संघर्ष से भी बहादुरी से निबटेंगे। हमलोग इस संघर्ष के आदि हो गये हैं, हमारे घर में इससे कोई नहीं डरता हमारे बच्चे भी नहीं।
लेखिका हाउसमेकर हैं. संपर्क: 09971798567